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अगर आप अपने बाइबल खोलकर ध्यान से पढ़ें तो शायद आप ऐसी कई चीजें पाएंगे जो आप पहले नहीं जानते थे।
पवित्र शास्त्र में ‘कलीसिया’ का मतलब है, वे लोग जिन्होंने पवित्र जीवन जीने के परमेश्वर की बुलाहट को माना और अपने पुराने पापमय राहों को छोड़ दिया। इफि 2:1–3; 1 पत 1:14–16; प्रेरित 2:40
इसलिए वचन हर मसीही को पवित्र कहता है। 1 कुरु 1:2; इफि 1:1
हर एक जो पवित्र बनने को ठुकराता है वह प्रभु को नहीं देख पाएगा! इब्र 12:14
कलीसिया पवित्र जनों की सहभागिता हैं। 1 कुरु 3:16–17
पाप में रहने वाला व्यक्ति कभी कलीसिया का भागी नहीं हो सकता। मत्ती 18:15–18; 1 कुरु 5:1–13; 1 यूह 3:5–10
परमेश्वर हर मसीही को परीक्षाओं पर विजय पाने की ताक़त देते हैं। वे हमें उसे भावने वाली जिंदगी जीने के लिए काबिल बनाते हैं। 1 कुरु 10:13; रोम 8:2,9; रोम 6:12–14,17–18
‘मसीही’ इस पद का मतलब है वह व्यक्ति जो अपने हर फैसले में यीशु का अनुकरण करता है। यीशु पर विश्वास करने का मतलब उनकी हर बात का मानना होता है: यूह 3:36, 15:7, 10, 14; मत्ती 7:21–23; लूक 14:25–35। नए नियम में ‘मसीही’, ‘शिष्य’, ‘भाई’, ‘परमेश्वर के पुत्र’, जैसे शब्दों का एक ही मतलब है।
खुद व्यक्तिगत तौर पर लिए गए फैसले से ही कोई जन मसीही बनता है: यूह 1:12; और उस समय से वह अपने हर गलत काम से पश्चाताप कर पापों को मानने को तैयार होता है: याकूब 5:16। मसीही लोग अपने पुराने चाल-चलन के अनुसार जीना नहीं चाहते: 1 यूह 1:9; रोम 6:1–11। यीशु का शिष्य पूरी तरह तैयार रहता है कि परमेश्वर उसे बदल दे और उनकी इच्छाएं पूरी करें: इफि 2:10; रोम 12:1–2
इसलिए यह जरूरी है कि मसीही लगातार इकट्ठे मिलते रहे कि एक साथ सीखें और एक दूसरे को चिताएँ एवं प्रोत्साहित करें: प्रेरित 2:37–47; इब्र 3:12–14
मसीही प्रेरितों के शिक्षा में बने रहते हैं: प्रेरित 2:42; इफि 2:20; 2 तिमु 3:16; सामाजिक परंपराओं में नहीं जो परमेश्वर के वचनों को भ्रष्ट करते है। यीशु ने साफ़ कहा था कि सांसारिक परंपराओं का पालन करने वाले उसके शिष्य बन ही नहीं सकते: मरकुस 7:6–9; गला 1:8–9; 2 यूह 9–11; यहूदा 3 (तुलना करे, व्यवस्था 4:2; 13:1; निति 30:6)
बाईबल बताती है कि मसीही ‘चुने हुए लोग, राजकीय याजक-गण’ है: 1 पत 2:5–9 अपनी जिंदगी से वे एक नमूना देते हैं और अपने इर्द-गिर्द हर एक को बुलावा देते हैं कि परमेश्वर से मेल-मिलाप कर यीशु के पीछे हो ले। 2 कुरु 5:20; मत्ती 5:13–16
परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप और पापों से आज़ादी हमें एक दूसरे के साथ प्यार से सफ़र तय करने में सहायता करती है, जिस तरह यीशु हम सब से प्यार करते हैं !
नए नियम में ऐसा कोई वाक्य नहीं है जो हमें किसी मनुष्य की आराधना करने को बताएं। न ही हम किसी व्यक्ति-विशेष की श्रद्धा रखकर ईश्वर के करीब आ पाएंगे—ऐसी कोई बात हम बाइबिल में नहीं पाते। बल्कि बाइबिल में मनुष्य या स्वर्गदूतों की आराधना की सख्त मनाही है !
मरियम : मरकुस 3:31–35; लूका 11:27–28; रोम 1:23
पतरस : मत्ती 16:22–23; प्रेरित 10:25–26; गला 2:11–16
संत जन : प्रेरित 14:8–18; 2 कुरु 3:4–9; 4:6
स्वर्गदूत : कुलु 2:18; प्रकाशित 19:10; 22:8–9
मसीहियों को सिर्फ त्रिएक परमेश्वर की ही आराधना या श्रद्धा करनी चाहिए ! मत्ती 4:10; यूह 4:23–24; प्रेरित 4:10–12
अगर आपने पवित्र शास्त्र अभी तक नहीं पढ़ा हो तो ज़रा पढ़ें और परमेश्वर के वचन का सामना करें। हिम्मत कीजिए और स्पष्ट तौर पर उनके सामने खड़े होने का प्रयास करें। अपने विवेक की सुने और किसी भी तरह के बहाने को नकारे—जैसे कि, “मैं तो दूसरों की तरह ही हूँ”, “मैं न तो बहुत बुरा, न बहुत अच्छा हूँ”, इत्यादि।
ध्यान दें–
“क्योंकि विशाल है वह फाटक और चौड़ा है वह मार्ग जो विनाश की ओर ले जाता है और बहुत-से है, जो उससे प्रवेश करते हैं। परंतु छोटा है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन की ओर ले जाता है और थोड़े ही हैं जो उसे पाते हैं।” (मत्ती 7:13–14)
अगर आप यीशु का अनुकरण करना चाहे या अभी मसीही है, तो हम आपको जानना चाहेंगे। और आप के साथ संगति करना चाहेंगे ताकि हम साथ मिलकर अपने जीवन से परमेश्वर की महिमा करें। हम आशा करते हैं कि हम आप से सुनेंगे।